जो जितना ऊँचा,
उतना ही एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ही ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है l
जरुरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य
ठूँट-सा खडा न रहे,
औरों से घुले मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले l
- अटलबिहारी वाजपेयी
"क्या खोया क्या पाया"
उतना ही एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ही ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है l
जरुरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य
ठूँट-सा खडा न रहे,
औरों से घुले मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले l
- अटलबिहारी वाजपेयी
"क्या खोया क्या पाया"